यद्यपि आपस्तम्बगृह्यसूत्र एवं शांखायन गृह्यसूत्र का कथन है कि अन्वष्टका कृत्य में पिण्डपितृयज्ञ की विधि मानी जाती है, किन्तु कुछ गृह्यसूत्र इस कृत्य का विशद वर्णन करते हैं। आश्वलायन गृह्यसूत्र एवं विष्णु धर्मसूत्र
ने मध्यम मार्ग अपनाया है। आश्वलायन गृह्यसूत्र का वर्णन अपेक्षाकृत
संक्षिप्त है। यह ज्ञातव्य है कि कुछ गृह्यसूत्रों का कथन है कि अन्वष्टका
कृत्य कृष्ण पक्ष की नवमी या दशमी को किया जाता है। इसे पारस्कर गृह्यसूत्र , मनु एवं विष्णु धर्मसूत्र 0
ने अन्वष्टका की संज्ञा दी है। अत्यन्त विशिष्ट बात यह है कि इस कृत्य में
स्त्री पितरों का आहावान किया जाता है और इसमें जो आहुतियाँ दी जाती हैं,
उनमें सुरा, माँड़, अंजन, लेप एवं मालाएँ भी सम्मिलित रहती हैं। यद्यपि
आश्वलायन गृह्यसूत्र आदि ने घोषित किया है कि अष्टका एवं अन्वष्टक्य मासिक श्राद्ध या पिण्डपितृयज्ञ पर आधारित हैं तथापि बौधायन गृह्यसूत्र , गोभिलगृह्यसूत्र एवं खादिर गृह्यसूत्र ने कहा है कि अष्टका या अन्वष्टक्य के आधार पर ही पिण्डपितृयज्ञ एवं अन्य श्राद्ध किये जाते हैं। काठक गृह्यसूत्र
का कथन है कि प्रथम श्राद्ध, सपिण्डिकरण जैसे अन्य श्राद्ध, पशुश्राद्ध
(जिसमें पशु का मांस अर्पित किया जाता है) एवं मासिक श्राद्ध अष्टका की
विधि का ही अनुसरण करते हैं। पिण्डपितृयज्ञ का सम्पादन अमावस्या के दिन
केवल आहिताग्नि करता है। यह बात सम्भवत: उलटी थी, अर्थात् केवल थोड़े ही
आहिताग्नि थे, शेष लोगों के पास केवल गृह्य अग्नियाँ थीं और उनसे भी अधिक
बिना गृह्यग्नि के थे। यह सम्भव है कि सभी को पिण्डपितृयज्ञ के अनुकरण पर
अमावस्या को श्राद्ध करना होता था। ज्यों-ज्यों पिण्डपितृयज्ञ का सम्पादन
कम होता गया, अमावस्या के दिन श्राद्ध करना शेष रह गया और सूत्रों एवं
स्मृतियों में जो कुछ कहा गया है, वह मासि-श्राद्ध के रूप में रह गया और
अन्य श्राद्धों के विषय में सूत्रों एवं स्मृतियों ने केवल यही निर्देश
किया कि क्या-क्या छोड़ देना चाहिए। इसी से मासि-श्राद्ध ने प्रकृति की
संज्ञा पायी और अन्य श्राद्ध विकृति (मासि-श्राद्ध के विभिन्न रूप) कहलाये।
मासि-श्राद्ध में पिण्डपितृयज्ञ की अधिकांश बातें आवश्यक थीं और कुछ
बातें, यथा–अर्घ्य देना, गंध, दीप, आदि देना, जोड़ दी गयीं तथा कुछ अधिक
विशद नियम निर्मित कर दिये गये।
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